10वीं शताब्दी की कलचुरीकालीन है महिषासुर मर्दिनी का भव्य स्वरूप,आज से चैत्र नवरात्र का शुभारंभ,

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कोरोना के कारण 2 वर्ष तक सूने थे मंदिर, इस वर्ष भव्य होगा मां का दरबार

उमरिया (संवाद)। बिरसिंहपुर पाली। चैत्र नवरात्र के आगाज के साथ ही मां बिरासिनी के दरबार में भी भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है। पूरे नौ दिन तक चलने वाले इस महापर्व के दौरान माता बिरासिनी के दरबार मे भक्तों की अपार भीड़ मातारानी के पूजा अर्चना के लिए पहुंचती है। सुबह माता बिरासिनी की पूजा अर्चना हवनादि कर कलश स्थापित किया गया। यहां मां बिरासिनी की भव्य आरती की गई। इसके साथ ही मंदिर परिसर में जवारे बोना शुरू कर दिया गया है। हर साल यहां हजारों की संख्या में जवारा बोए जाते हैं। भक्तिमय माहौल के बीच जवारों का विसर्जन किया जाता है। इस साल भी १५ हजार से ज्यादा जवारे बोए जाएंगे। मातारानी के दरबार मे प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी भक्तों दर्शनार्थ रेलिंग की व्यवस्था की गई है साथ ही मन्दिर प्रांगण में बच्चों के मुंडन कर्णछेदन कथाश्रवन की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। चैत्र रामनवमी पर्व के दौरान मन्दिर प्रांगण सहित नगर के प्रमुख चौराहे तिराहे सार्वजनिक स्थलों में भारी पुलिस बल तैनात किए गए है जो सुरक्षा व्यवस्था,आवागमन व्यवस्था पर नजर रखेंगे।

दो मंजिलों में जवारों की स्थापना
जवारों और प्राचीन प्रतिमा को लेकर प्रसिद्ध इस मां बिरासिनी मंदिर में इस बार २७ हजार से ज्यादा जवारे बोए जा सकते हैं। दो मंजिला में जवारों को बोया जाता है। अभी एक मंजिला पूरा जवारों से भर गया है। दूसरे मंजिल में भी जवारे बोने शुरू किया जाएगा। माता बिरासिनी के दरबार मे श्रद्धालुओ द्वारा मनोकामना कलश स्थापित करने के लिए मन्दिर प्रबन्ध संचालन समिति के द्वारा बेहतर व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओ के लिए मनोकामना जवारे ज्योति घी कलश, मनोकामना तेल जवारे ज्योति कलश,आदि की व्यवस्था की गई है।

10वीं शताब्दी की कलचुरीकालीन है महिषासुरम र्दिनी का स्वरूप

ल्लेखनीय है कि 10वीं शताब्दी की कलचुरी कालीन महिषासुर मर्दिनी विराट स्वरूप में स्थापित माता बिरासिनी देवी मंदिर उमरिया के बिरसिहपुर पाली में है जहां वर्ष में दो बार शारदेय व चैत्र नवरात्र में धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है जिसमें प्रतिवर्ष हजारों घी तेल व जवारा कलसों की स्थापना की जाती है।

मंदिर से जुड़ी यह है मान्यता
बताया जाता है कि माता बिरासिनी मंदिर अति प्राचीन हैं माँ ने सैकडो वर्ष पूर्व पाली निवासी धौकल पंडा को स्वप्न दिए कि में एक खेत में हूू तुम आकर मुझे ले जाओ और मेरी प्रतिमा नगर के बीचों बीच स्थापित करो तब धौकल पंडा ने ऐसा ही किया। पूर्व में माँ को एक पेड के नीचे मडुलिया बनाकर विराजमान कराया गया, फिर एक मंदिर का निर्माण नगर के राजा बीर सिंह ने कराकर इन्हें स्थापित किया।
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