पार्षदों ने चुनाव क्या जीता जैसे कोई गुनाह कर दिया हो,निर्वाचित पार्षदो को चिमनी लेकर ढूंढ रहे वार्डवासी

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कौशल विश्वकर्मा,9893833342
उमरिया (संवाद)। जोड़तोड़ की राजनीति ने सभी को हलाकान कर रखा है। नगरपालिका का चुनाव जीतने के बाद जीते हुई पार्षद ठीक तरह से लोंगो से मिल भी नही पाये थे कि उन्हें छिपाना पड़ गया। अब हालात ऐसे हो गए है कि पार्षदों ने जैसे चुनाव जीतकर कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो। वहीं वार्डवासी  ही अब पार्षदों को ढूंढते नजर आ रहे है।
जानकारी के मुताबिक उमरिया नगरपालिका चुनाव की मतगणना 17 जुलाई को कराई गई थी जिसमें जिन जिन पार्षदो ने चुनाव जीता है, लगता है कि वे कोई बड़ा गुनाह कर बैठे है। इससे भले तो वही लोग है जो इस चुनाव में पार्षदी हार गए कम से वह लोग अपने घरों में अपने बाल बच्चो और परिवार के साथ तो है, और किसी भी परेशानी या जरूरत में वह अपने परिवार, मोहल्ले, रिश्तेदारों के यहां जाकर खड़े तो हो सकते है। लेकिन चुनाव जीतकर पार्षद बने लोग कहीं अपने शहर से दूर दूसरे राज्यो में छिपाए गए है। आज उनके परिवार, पत्नी, बच्चो को उनकी आवशकता है। लेकिन वे उनसे मिल तक नहीं पा रहे है रिश्तेदार और उनके वार्ड के लोग जिन्होंने उन्हें अपना कीमती वोट देकर जिताया है। वे लोग तक उनसे न मिल सकते और न ही जीत की बधाई दे पा रहे है, ऊपर से इस सावन के महीने में हर दिन त्यौहार से जहां बच्चे अपने पैरेंट्स के साथ न होकर निराश हो रहे है वही परिवार भी परेशान हो रहा है।
दरअसल कुछ समय से हर जगह तोड़ भांज और जोड़ तोड़ की राजनीति हावी है। चूंकि नगरपालिका और नगर परिषदों में चुने गए पार्षदो के द्वारा ही अध्यक्ष का चुनाव होना है। ऐसे में पार्षदो की भूमिका अहम हो जाती है। जिसके पास अधिक पार्षद होंगे उसी का अध्यक्ष बनाया जाएगा। इएलिये पार्षदों को दूर छिपाकर रखा गया है कि कहीं दूसरे दलों के लोग उनके पार्षदो को बरगलाकर या रुपयों का लालच देकर अपने पाले में ना ले ले। इस जोड़तोड़ की राजनीति ने जनता का जनादेश को मजाक बनाकर रख दिया है, इनके नजर में जनादेश कोई मायने नही रखता है।
लेकिन यहां पर दिलचस्प बात यह कि इस नगरपालिका के चुनाव में 24 वार्डों में से 14 पार्षद कांग्रेस पार्टी से जीते है, वहीं 9 पाषर्द बीजेपी से विजयी हुए है। ऐसे में स्वस्थ्य रूप से परिषद कांग्रेस की बननी चाहिए। लेकिन जोड़तोड़ के भय से कुछ पार्षदों को कहीं दूर छिपाने की जानकारी मिली है। लेकिन जो पार्टी परिषद बनाने से दूर है, उसके द्वारा भी अपने कुछ पार्षदों को जिले के बाहर अन्यत्र छिपाने की जानकारी मिल रही है।अब सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस को भाजपा से खतरा है या भाजपा को कांग्रेस पार्टी से खतरा है?
बहरहाल 17 जुलाई को चुनाव नतीजे आने के बाद लगभग 15 दिन बीत रहे है और लगभग इतने ही दिए पार्षदो को छिपाए हो गए है। लेकिन अभी तक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के लिए नोटिफिकेशन तक जारी नही हुआ है। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि ना जाने ऐसे और कितने दिन पार्षदों को छिपाकर रखा जाएगा और ना जाने वे अब और कितने दिनों तक अपने बाल-बच्चो, परिवार और अपने रिश्तेदारों से दूर रहेंगे?
Photo source: google

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