उमरिया (संवाद)। जिले के आदिम जाति कल्याण विभाग में हुए करोड़ो रूपये के भ्रस्टाचार का मामला किसी से छिपा नही है।यहां पर पदस्थ रहे बाबू के द्वारा किस कदर गड़बड़ी कर पूरे कारनामे को अंजाम दिया था। जिसके लिए उसे सस्पेंड भी होना पड़ा और उसके खिलाफ एफ आई आर भी दर्ज कराई गई है। लेकिन इतना सब होने बाद क्या कारण है कि जिले के कलेक्टर उसे अब नजर अंदाज कर रहे हैं?
जिले में बीते 2 साल पहले आदिम जाति कल्याण विभाग का बाबू बृजेंद्र सिंह के द्वारा ठेकेदार से सांठगांठ करके बाबू के द्वारा अपने अधिकारी को अंधेरे में रखकर बगैर निर्माण कार्य किये लाखों करोड़ों का भुगतान कर दिया गया। इसके अलावा ठेकेदार से सांठगांठ करके बगैर एफडीआर जमा कराए ही कार्य करने का आदेश जारी कर दिया गया और इसकी जगह बाबू ब्रजेन्द्र सिंह के द्वारा फ़र्जी एफडीआर जमा कराई गई। मामले की शिकायत तत्कालीन कलेक्टर के समक्ष पहुंची और काफी हो हल्ला होने के बाद जांच में मामला सही पाते हुए कलेक्टर के द्वारा आरोपी बाबू को निलंबित कर दिया गया था और जांच के आदेश दिए गए थे।
मामले की जांच उपरांत और जहां जहां निर्माण कार्य होना था वहां कार्य नहीं पाया गया। इसके अलावा उन जगहों के जिम्मेदार भी इस बात को खुलकर बताया कि हमारे यहां या हमारे परिसर में ऐसा कोई भी कार्य नहीं हुआ है। आरोप सिद्ध होने के बाद तत्कालीन कलेक्टर के द्वारा मामले में पुलिस को एफआईआर दर्ज कराने पत्र भी लिखा गया था जिसमें आरोपी बाबू बृजेंद्र सिंह के ऊपर और ठेकेदार के ऊपर एफआईआर दर्ज कराई गई थी। जिसके बाद विभागीय जांच के आदेश दिए गए थे।
लेकिन अब बाबू बृजेंद्र सिंह को बहाल कर दिया गया है और उसे उसी कार्यालय आदिम जाति कल्याण विभाग में पदस्थ कर जबरन उसे स्थापना का कार्य सौंप दिया गया है। जिले का यह बड़ा दुर्भाग्य है कि जिस विभाग में और जिस पद में रहते हुए बाबू बृजेंद्र सिंह ने लगभग 4 करोड़ का घोटाला किया और जिसके ऊपर एफ आई आर दर्ज है। उसे पुनः उसी जगह बैठा देना और कार्यभार सौंप देना, कहीं ना कहीं पूरे प्रशासन की मिलीभगत है। जबकि सभी जानते हैं कि आरोपी बाबू के द्वारा उसी विभाग में वही पद पाने के बाद उसके द्वारा पूर्व में की गई गड़बड़ी के दस्तावेजों और रिकॉर्ड की चोरी की जा सकती है या उसमें सुधार किया जा सकता है। निश्चित रूप से जिले के कलेक्टर डॉ केडी त्रिपाठी आखिर आरोपी बाबू को नजरअंदाज क्यों कर रहे हैं?