उमरिया/पाली (संवाद)। संजय गांधी ताप विद्युत ग्रह में ठेका कंपनी और पावर प्लांट प्रबंधन की लापरवाही से 3 मजदूरों के झुलसने के बाद अब पुलिस ने ठेका कंपनी पर एफआईआर दर्ज करते हुए तामाम बिंदुओं की जांच की जा रही है। वही 2 दिन बाद प्लांट में एक और घटना में एक और मजदूर के झुलसने के मामले में ठेका कंपनी डीएन इंटरप्राइजेज के ऊपर पुलिस FIR दर्ज करने की तैयारी में जुटी है।

दरअसल संजय गांधी ताप विद्युत गृह में लगातार लापरवाही और भ्रस्टाचार के कारण हमेशा सुर्खियों में रहा है। कभी कोयले की खरीद और आने वाले रैक में हेराफेरी उसकी गुणवत्ता के मामले में लीपापोती सहित अन्य तामाम मामले है। वहीं पावर प्लांट में काम कर रही ठेका कंपनियों के द्वारा प्लांट के प्रबंधन से सांठगांठ कर निर्धारित मजदूरों की संख्या से आधे मजदूरों से पूरा काम कराया जा रहा है। कारण यह कि ठेका कंपनी मजदूरों की संख्या तो निर्धारित संख्या के अनुसार ही प्रदर्शित करती है लेकिन काम मे आधे ही रखे जाते है। उनमें से भी कई मजदूरों को बगैर गेट पास के अंदर दाखिल कराया जाता है। यह इसलिए कि उन मजदूरों को मिलने वाले ईपीएफ राशि का घोटाला किया जा सके।इसके अलावा इलेक्ट्रिक मेंटेनेंस जैसे कार्यो को टेक्निकल और कुशल श्रमिक से कार्य कराया जाना चाहिए लेकिन ठेका कंपनियों के द्वारा अकुशल मजदूरों से काम कराया जाता है। इसी कारण 12 सितंबर को प्लांट में मेंटेनेंस का काम करते हुए एक ब्लास्ट हुआ जिसमे 3 मजदूर बुरी तरह झुलस गए जिनका आज भी जबलपुर के निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है।
घटिया उपकरण और अकुशल श्रमिको से काम के कारण हुआ हादसा

जानकारी के मुताबिक ठेका कंपनी एक्का लॉजिस्टिक कम्पनी के द्वारा पावर प्लांट के जिम्मेदारों से सांठगांठ कर प्लांट में मेंटेनेंस के नाम पर घटिया किस्म के उपकरण और सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है।इसके अलावा इलेक्ट्रिक कार्यो के लिए तकनीकी रूप से कुशल टेक्नीशियन से काम कराया जाना चाहिए था लेकिन ठेका कंपनी के द्वारा अकुशल श्रमिको से कार्य को कराया गया और हादसे की भी यही वजह रही जिसमें 3 श्रमिक बुरी तरीके से झुलस गए है और आज अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रहे है। इसके अलावा इस घटना के 2 दिन बाद डीएन इंटरप्राइजेज के द्वारा इसी तरीके से मेंटेनेंस का कार्य कराया जा रहा था जिसमे एक मजदूर झुलस गया है।
श्रमिको के पास नही था गेटपास
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पावर प्लांट के भीतर काम करने वाली ठेका कंपनियों के द्वारा मजदूरों की ईपीएफ राशि डकारने के लिए श्रमिको का गेटपास नही बनवाती है। प्लांट के सिक्युरिटी के जिम्मेदारों से ठेका कंपनी सांठगांठ कर श्रमिको को काम के लिए प्लांट के अंदर ले जाया जाता है। लेकिन उनका गेटपास नही बनवाया जाता है।क्योंकि अगर गेटपास बनेगा तो मजदूरों का ईपीएफ भी जमा कराया जाएगा। ठेका कंपनियों के द्वारा ईपीएफ के नाम पर अपने कुछ खास लोंगो के नाम जमा कराया जाता है। शेष मजदूरों के ईपीएफ की राशि डकार ली जाती है।
बहरहाल इस लापरवाही और घटिया किस्म के उपकरण का उपयोग, कुशल इलेक्ट्रिशियन की जगह अकुशल श्रमिको से काम कराए जाने में जितना दोषी ठेका कंपनी है उतना ही प्लांट प्रबंधन भी दोषी है। ऐसे में कार्यवाही सिर्फ ठेका कंपनी के ऊपर करना और प्रबंधन को क्लीन चिट देना कहाँ तक उचित है।