जबलपुर (संवाद)। मध्यप्रदेश में बीते कुछ सालों से लगातार खुले बोरवेल में मासूम बच्चों के गिरने की घटनाएं बढ़ी है। लगातार प्रदेशभर के विभिन्न इलाकों से बोरवेल में बच्चों के गिरने की खबरें भी आती रहती हैं। वही खुले बोरवेल मामले को हाई कोर्ट जबलपुर ने स्वयं संज्ञान लिया है। हाईकोर्ट ने एमपी सरकार से पूछा है कि इस मामले में सरकार क्या कदम उठा रही है। इसके लिए राज्य सरकार ने हाई कोर्ट से एक महीने यानी चार हफ्ते का समय मांगा है।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में एक खुले बोरवेल में गिरने से 3 साल की बच्ची की मौत के बाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के द्वारा स्वत: संज्ञान लिया है।याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखा है कि एक नीति यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया जा रहा है कि ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और इस उद्देश्य के लिए कुछ समय मांगा गया है।
जिसके बाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आरवी मलिमथ और न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए मांग स्वीकार कर एमपी सरकार को नीति बनाने के लिए 1 महीने के भीतर का समय दिया है।अब सरकार खुले बोरवेल से बचाव संबंधी नीति या इसे खुला छोड़ने वालो के खिलाफ कठोर कानून बनाने बना सकती है।
बता दे कि बीते माह सीहोर जिले के मुंगावली गांव में 3 साल की बच्ची सृष्टि एक खुले बोरवेल में गिर गई थी। जिसके बाद उसे बचाने सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के द्वारा उसे बचाने की कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका था। जबकि 50 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद उसे बाहर निकाला गया तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
घटना पर स्वयं संज्ञान लेते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि खुले बोरवेल मासूम बच्चो को जिंदा दफनाने का जरिया बन गए हैं। इसमें खुले बोरवेल में गिरने से मरने वाले छोटे बच्चों की एक लंबी सूची का जिक्र था। कोर्ट ने इस संदर्भ में राजकुमार, माही, नदीम, सीमा, फतेहवीर, रितेश और सृष्टि को नामित करते हुए कहा कि कई और बच्चों का खुले बोरवेल में गिरकर दुखद मौत हुई है।
स्वतः संज्ञान याचिका में हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि बोरवेल एक मूक हत्यारा बन गए हैं। ऐसी घटनाएं अक्सर लापरवाही, जागरूकता की कमी और अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के कारण होती हैं। याचिका में आगे कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सभी राज्यों के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के बावजूद इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
याचिका की सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने याचिका पर एमपी के मुख्य सचिव और पीएचई के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। मंगलवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि इस दिशा में उनके द्वारा एक नीति बनाई जा रही है।जिसके लिए उन्हें कुछ और समय की आवश्यकता है। तब कोर्ट ने राज्य शासन को 4 सप्ताह यानी 1 माह के भीतर का समय निर्धारित किया है।
Source:The Times Of India