उमरिया (संवाद)। हमेशा की तरह एक बार फिर उमरिया शहर से शर्मनाक तश्वीर सामने आई है। मुख्यालय के वार्ड नंबर 12, ज्वालामुखी मोहल्ले की यह तश्वीर जिला प्रशासन और जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान है,वहीं सरकार के लिए भी उनके द्वारा किये गए विकास और जनता के बीच बड़े बड़े वादे करने वालों को यह तश्वीर एक आईना दिखाने जैसी है।
उमरिया जिले के ज्वालामुखी में शव का अंतिम संस्कार करने नदी पर करके जाना पड़ता है। हजारों की संख्या में मौजूद यहां के निवासी कई बार शासन-प्रशासन के सामने भी यह बात रख चुके है और नदी में छोटा सा रपटा (पुल) बनाने की मांग भी कर चुके है, बावजूद इसके लगातार प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार यहाँ के लोग होते चले आये है। इस इलाके जब किसी की मौत होती है तब कुछ ऐसी ही तश्वीरें सामने आती है, और तभी जिम्मेदार फौरन आगे आकर पुल बनवाने की बात कहकर मामले को ठंडा कर देते है, वहीं समय निकल जाने के बाद जिम्मेदार पड़ला झाड़ लेते है।
बीते 3 दिन पहले की यह तश्वीर हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देगा कि सरकार के विकास का दम यही है, जहां अंतिम संस्कार के लिए उचित व्यवस्था न हो,और शव को शमशान तक ले जाने के लिए नदी में घुसकर उस पार तक ले जाने में मशक्कत करना पड़े। इसके पहले भी ऐसा ही मामला मीडिया के माध्यम से जिम्मेदारों तक पहुंच चुका है बावजूद इसके प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
गौरतलब है कि सरकारे, जनता से कितना भी दम भरे कि उन्होंने विकास किया है। लेकिन धरातल में बैठे जिम्मेदार सरकार की मंशा पर कितना अमल करते है यह तश्वीर देखकर आसानी से समझा जा सकता है।
पूरे जिले का है यही आलम
कहते है विकास शहर से शुरू होता है और विकास देखना है शहरों को देखो, बात भी सही है शहर में जिम्मेदार और पढ़े लिखे लोंगों के अलावा शासन और प्रशासन के जिम्मेदार 24 घंटे उपलब्ध रहते है। इसके अलावा अन्य तमाम सरकारी मशीनरी भी शहर में ही मौजूद रहती है और यही कारण है कि गांवों में विकास की चिड़िया जल्दी नही पहुंच पाती है।इस आदिवासी जिले में ज्यादातर गांव ही है, चारो तरफ जंगलों से घिरा दुरस्त अंचलो में बसा ग्रामीण क्षेत्र की हालत जस की तस है।यहां तो मानव जीवन का मोल नही है तो फिर मरने के बाद क्या होगा? और साफ दिखाई भी दे रहा की जब शहर में शव का अंतिम संस्कार करने की माकूल व्यवस्था नही है तो गांवों में कैसे होगी। क्योंकि विकास तो शहर से ही शुरू होता है।