शहडोल (संवाद)। अंधविश्वास और कुप्रथा स कदर हावी है यह आदिवासी बाहुल्य जिला शहडोल में देखा जा सकता है। जहां भारी भरकम सरकारी सिस्टम का स्वास्थ्य अमला और महिला बाल विकास की टीम के द्वारा ग्रामीण इलाकों में बेहतर व्यवस्था नहीं देने के कारण लोग अंधविश्वास के शिकार हैं। इस अंधविश्वास ने बीते 4 दिन में 2 मासूम बच्ची की जान ले ली है। दो मासूम की कुप्रथा दगना हुई मौत के मामले में पूरे प्रदेश मे हड़कंप मचा हुआ है। वहीं आनन-फानन में जिला प्रशासन के द्वारा मामले की जांच कराई गई, जांच के बाद जिस तरीके से स्वास्थ विभाग ने कार्यवाही की है उस पर भी अब सवाल खड़े हो रहे हैं।
पहले कठौतिया और अब सामतपुर की मासूम की मौत
जिले के कठौतिया गांव और सामतपुर गांव की मासूम अंधविश्वास के चलते कुप्रथा की भेंट चढ़ गई। पहले 3 वर्षीय मासूम बच्ची को कुप्रथा दगना के चलते 51 बार गर्म सलाखों से दागा गया। बच्ची की हालत बिगड़ने पर उसे मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था लेकिन उसकी मौत हो गई।इसके 3 दिनबाद वही बगल के गांव सामतपुर की नन्हीं बच्ची को 21 बार गर्म सलाखों से दागा गया। जब उसकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ और हालत बिगड़ते गई तब उसे जिले के मेडिकल कॉलेज में लाया गया जहां से उसके परिजन उसका इलाज कराने एक प्राइवेट डॉक्टर यहां ले गए लेकिन उसके भी मौत हो चुकी है।
दगना से मौत के बाद जिले से लेकर प्रदेश तक मचा हड़कंप
जिले में व्याप्त अंधविश्वास और कुप्रथा के चलते दो मासूम की मौत मामले में जिले से लेकर राजधानी भोपाल तक हड़कंप मच गया जिसके बाद जिला प्रशासन ने कठौतिया गांव की मासूम को दफनाए जाने के बाद उसे कब्र से बाहर निकाल लिया और जांच के निर्देश दिए गए। हालांकि पीएम रिपोर्ट में क्या कुछ स्पष्ट कारण सामने आया है यह फिलहाल साफ नहीं है। लेकिन एक बात तो तय है की मासूम के इस हालत के जिम्मेदार कुप्रथा दगना ही है। वहीं दूसरी मासूम सामतपुर गांव की मौत भी उसे गर्म सलाखों से दागने के कारण हुई है।
इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि आज के दौर में जब देश तरक्की की नई ऊंचाइयों को छू रहा है। तब भी जिले में अंधविश्वास और कुप्रथा का मकड़जाल फैला हुआ है। सरकारें इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए एक अभियान भी चला रही है जिसमें कड़े निर्देश भी दिए गए हैं और कानूनी कार्यवाही भी किए जाने के निर्देश हैं। लेकिन जिले में मौजूद भारी-भरकम अमला स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास के कर्मचारी ग्रामीण इलाकों में इस अंधविश्वास और कुप्रथा को रोकने में असफल साबित हुए हैं। निश्चित रूप से ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य विभाग की ओर से तैनात किए गए नर्स, एएनएम और डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचते और ना ही उन्हें इसकी जरूरत समझ आती।
प्रशासन की कार्यवाही सवालों के घेरे में
दगना से हुई मौत मामले में जिला प्रशासन ने जांच के निर्देश दिए और स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारियों को कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए थे जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने स्वास्थ्य अमले के ऊपर महेश दिखावे के लिए कार्यवाही की गई वही महिला विकास बाल विकास के छोटे कर्मचारी की सेवा समाप्त कर दी गई। इस कार्यवाही से जहां स्वास्थ्य विभाग ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए कुछ को इधर से उधर और कुछ को महज कारण बताओ नोटिस जारी किया है। वही महिला बाल विकास की 2 आशा कार्यकर्ता और उसके सहयोगी की सेवा समाप्ति के आदेश जारी कर दिए गए। इस कार्यवाही से जहां एक बार फिर छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बना दिया गया है। वही स्वास्थ विभाग अपने कर्मचारियों को बचाते हुए दिखाई दे रहा है। यह कार्यवाही महज खानापूर्ति समझ आती है।