बांधवगढ़ प्रबंधन ने बड़े उत्साह और श्रद्धाभाव से 10 हजार कबीर पंथियों को पार्क के भीतर पैदल कराया प्रवेश,जंगली हांथियो और अन्य जानवरों के खतरे को किया दरकिनार

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उमरिया/बाँधवगढ़ (संवाद)। जिले के ऐतिहासिक बांधवगढ़ के किले में कबीर गुफा चबूतरा के दर्शन और पूजा आराधना करने लगभग 10 हजार की संख्या में कबीर अनुयायियों ने बांधवगढ़ के मुख्य गेट ताला से पैदल चलकर किला पहुंचेंगे और वहां पर स्थित कबीर गुफा का दर्शन कर पूजा आराधना करेंगे। वहीं बांधवगढ़ प्रबंधन के द्वारा जंगली हाथी और अन्य जानवरों से खतरे का पूर्व से ही भय और हौआ खोखला साबित हुआ है हालांकि बांधवगढ़ प्रबंधन के द्वारा मेले के 1 दिन पहले से ही जंगली हाथियों और अन्य जानवरों को वहां से हटाने और उन पर नजर रखने कर्मचारियों की कई टीमें और पालतू हाथी लगाए गए थे।

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उमरिया/बाँधवगढ़ (संवाद)। जिले के ऐतिहासिक बांधवगढ़ के किले में कबीर गुफा चबूतरा के दर्शन और पूजा आराधना करने लगभग 10 हजार की संख्या में कबीर अनुयायियों ने बांधवगढ़ के मुख्य गेट ताला से पैदल चलकर किला पहुंचेंगे और वहां पर स्थित कबीर गुफा का दर्शन कर पूजा आराधना करेंगे। वहीं बांधवगढ़ प्रबंधन के द्वारा जंगली हाथी और अन्य जानवरों से खतरे का पूर्व से ही भय और हौआ खोखला साबित हुआ है हालांकि बांधवगढ़ प्रबंधन के द्वारा मेले के 1 दिन पहले से ही जंगली हाथियों और अन्य जानवरों को वहां से हटाने और उन पर नजर रखने कर्मचारियों की कई टीमें और पालतू हाथी लगाए गए थे।दरअसल बांधवगढ़ प्रबंधन के द्वारा पूर्व से ही यह धारणा बना ली गई थी कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन कबीर मेला और कबीर गुफा तक दर्शन के लिए दर्शनार्थियों को पैदल भेजा जाए और यही मुख्य वजह है कि पहले प्रबंधन ने कबीरपंथीयों पार्क प्रवेश के लिए लिखित रूप से आदेश जारी कर दिया गया। इनके द्वारा जारी आदेश में कहीं पर इस बात का उल्लेख नहीं किया गया कि मेला क्षेत्र और किले के रास्ते में जंगली हाथियों का खतरा है। इससे साफ जाहिर होता है कि बांधवगढ़ प्रबंधन जानबूझकर इस कबीर यात्रा को संपन्न कराना चाहता था, और इसके पहले यहां के स्थानीय लोंगो की सदियों पुरानी परंपरा श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर पार्क के अंदर किला स्थित भगवान बाँधवाधीश के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक लगाना चाहता रहा है।हालांकि इसकी एक मुख्य वजह और भी है, वह यह कि इस बार के संत कबीर मेले के आयोजन के दौरान जिले का रायतेबाज यहां मौजूद नहीं है। क्योंकि जन्माष्टमी के दौरान वह रायतेवाज उमरिया जिले में मौजूद था जिस कारण श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर किला स्थित भगवान बांधवाधीश के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को पार्क के अंदर प्रवेश नही मिल सका था। जबकि अगर उस दौरान जिले का रायतेबाज आगे आकर पूरा मोर्चा नहीं संभाला होता तो निश्चित रूप से पार्क प्रबंधन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मेले और किला स्थित भगवान बाँधवाधीश के दर्शन जरूर कराता। प्रबंधन ने जिस तरीके से कबीर अनुयायियों के लिए व्यवस्था बनाई है, उस समय भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में भी पूरी व्यवस्था कर लेता।

 

दरअसल बांधवगढ़ प्रबंधन के द्वारा पूर्व से ही यह धारणा बना ली गई थी कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन कबीर मेला और कबीर गुफा तक दर्शन के लिए दर्शनार्थियों को पैदल भेजा जाए और यही मुख्य वजह है कि पहले प्रबंधन ने कबीरपंथीयों पार्क प्रवेश के लिए लिखित रूप से आदेश जारी कर दिया गया। इनके द्वारा जारी आदेश में कहीं पर इस बात का उल्लेख नहीं किया गया कि मेला क्षेत्र और किले के रास्ते में जंगली हाथियों का खतरा है। इससे साफ जाहिर होता है कि बांधवगढ़ प्रबंधन जानबूझकर इस कबीर यात्रा को संपन्न कराना चाहता था, और इसके पहले यहां के स्थानीय लोंगो की सदियों पुरानी परंपरा श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर पार्क के अंदर किला स्थित भगवान बाँधवाधीश के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक लगाना चाहता रहा है।

हालांकि इसकी एक मुख्य वजह और भी है, वह यह कि इस बार के संत कबीर मेले के आयोजन के दौरान जिले का रायतेबाज यहां मौजूद नहीं है। क्योंकि जन्माष्टमी के दौरान वह रायतेवाज उमरिया जिले में मौजूद था जिस कारण श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर किला स्थित भगवान बांधवाधीश के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को पार्क के अंदर प्रवेश नही मिल सका था। जबकि अगर उस दौरान जिले का रायतेबाज आगे आकर पूरा मोर्चा नहीं संभाला होता तो निश्चित रूप से पार्क प्रबंधन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मेले और किला स्थित भगवान बाँधवाधीश के दर्शन जरूर कराता। प्रबंधन ने जिस तरीके से कबीर अनुयायियों के लिए व्यवस्था बनाई है, उस समय भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में भी पूरी व्यवस्था कर लेता।
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