उमरिया (संवाद)। जिले का विख्यात बाँधवगढ़ टाईगर रिजर्व प्रबंधन लोंगो को गुमराह और साजिश करने के लिए हमेशा सुर्खियों में रहा है। इनके द्वारा चाहे टाइगर रिजर्व क्षेत्र में वन्य प्राणी की मौत का मामला हो या इसके अलावा और कोई मामला हो सभी में इनके द्वारा षड्यंत्र और साजिश की बातें सामने आती रहती हैं।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आया है जिसमें टाइगर रिजर्व प्रबंधन के द्वारा एक तरफ तो पहले ही कबीर मेला और किला स्थित कबीर गुफा तक जाने के लिए कबीर के अनुयायियों को लिखित रूप से परमिशन दी गई है। जबकि उस जारी पत्र में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि कबीर गुफा तक जाने वाले रास्ते में जंगली हाथियों को खतरा है। मीडिया में खबर आने के बाद इनके द्वारा प्रेस नोट के माध्यम से यह कहते हुए पाया गया कि कबीर गुफा तक जाने के लिए सिर्फ जिप्सियों का उपयोग किया जाएगा और पैदल कोई भी श्रद्धालु नहीं जाएगा। जबकि इनके द्वारा ऐसा कोई भी निर्देश पत्र जारी नहीं किया गया है। जिससे यह प्रतीत होता है कि बांधवगढ़ प्रबंधन के द्वारा पार्क के अंदर कबीर गुफा तक प्रवेश की अनुमति देने के बाद अब उनके द्वारा हाथियों के नाम दिखावा किया जा रहा है।
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उमरिया (संवाद)। जिले का विख्यात बाँधवगढ़ टाईगर रिजर्व प्रबंधन लोंगो को गुमराह और साजिश करने के लिए हमेशा सुर्खियों में रहा है। इनके द्वारा चाहे टाइगर रिजर्व क्षेत्र में वन्य प्राणी की मौत का मामला हो या इसके अलावा और कोई मामला हो सभी में इनके द्वारा षड्यंत्र और साजिश की बातें सामने आती रहती हैं।ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आया है जिसमें टाइगर रिजर्व प्रबंधन के द्वारा एक तरफ तो पहले ही कबीर मेला और किला स्थित कबीर गुफा तक जाने के लिए कबीर के अनुयायियों को लिखित रूप से परमिशन दी गई है। जबकि उस जारी पत्र में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि कबीर गुफा तक जाने वाले रास्ते में जंगली हाथियों को खतरा है। मीडिया में खबर आने के बाद इनके द्वारा प्रेस नोट के माध्यम से यह कहते हुए पाया गया कि कबीर गुफा तक जाने के लिए सिर्फ जिप्सियों का उपयोग किया जाएगा और पैदल कोई भी श्रद्धालु नहीं जाएगा। जबकि इनके द्वारा ऐसा कोई भी निर्देश पत्र जारी नहीं किया गया है। जिससे यह प्रतीत होता है कि बांधवगढ़ प्रबंधन के द्वारा पार्क के अंदर कबीर गुफा तक प्रवेश की अनुमति देने के बाद अब उनके द्वारा हाथियों के नाम दिखावा किया जा रहा है।अब सवाल ये उठता है कि बीते अगस्त माह में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के लिए किला स्थित राम जानकी मंदिर जाने में इनके द्वारा यहां से लेखक राजधानी भोपाल तक जंगली हाथियों से खतरा के नाम से भ्रम फैलाया गया है। जबकि उस समय जंगली हाथियों का कोई भी खतरा नहीं था। पता नहीं क्यों बांधवगढ़ प्रबंधन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मेले को खत्म करने और सदियों पुरानी परंपरा को कुचलने के लिए आमादा है। वहीं जब सही में जंगली हाथियों का खतरा इलाके में बना हुआ है तब इनके द्वारा कबीर मेला और कबीर गुफा तक जाने के लिए कबीर अनुयायियों को लिखित रूप से आने जने की अनुमति प्रदान की गई है। इतना ही नहीं इनके द्वारा जारी आदेश में इस बात की भी जानकारी छिपाई गई है कि इस इलाके में जंगली हाथियों का मूवमेंट है।3 दिनों तक चलने वाला यह कबीर मेला में अब तक 5 हजार लोग पहुंच चुके हैं, इसके अलावा लगभग 5 हजार की संख्या में और भी कबीर अनुयाईयों के पहुंचने की उम्मीद है। प्रबंधन के द्वारा औपचारिकता के तौर पर यह बात जरूर कही जा रही है कि कबीर गुफा तक किसी के भी पैदल जाने की अनुमति नहीं है। लेकिन उन्हें रोकने के लिए प्रबंधन ने कोई भी इंतजाम या तैयारी नहीं की हैं। जबकि उनके प्रवेश करने के लिए लिखित रूप से आदेश जरूर जारी किए गए हैं। आखिर लगभग 10 हजार की भीड़ को रोकने के लिए प्रबंधन के पास क्या उपाय है?श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दौरान तो जिला प्रशासन के एक रायतेबाज के द्वारा पूरे जिले की पुलिस बल को झोंक दिया गया था। इसके अलावा बांधवगढ़ के पहुंच मार्गों में पुलिस की तैनाती कर श्री कृष्ण भक्तों को वहीं से वापस लौटा दिया गया था। इसके लिए पुलिस ने मानपुर और उधर के तमाम इलाकों के लिए मानपुर मोड में बैरिकेडिंग की गई थी, और इधर परासी गांव के पास बैरिकेडिंग की गई थी जिससे श्रद्धालु ताला बांधवगढ़ तक पहुंच ही नहीं सके।