This is a picture of the cleanliness
campaign of Umaria district, this
beautiful looking community toilet from
outside, which can be easily told from
outside that what a toilet is. But as soon
as you look inside, the exact opposite will
be seen and it will be understood that what
is the condition of cleanliness in the district.
The people clearly sabotaging the cleanliness
campaign Even though it has been made well
colored,but from inside it remains a den of
immoral activities.
उमरिया (संवाद)। यह उमरिया जिले की स्वच्छता अभियान की तस्वीर है, बाहर से रंग-बिरंगा खूबसूरत दिखने वाला यह सामुदायिक शौचालय जिसे बाहर से देखकर सहज ही कहा जा सकता है कि वह क्या शौचालय है। लेकिन जैसे ही आप अंदर नजर डालेंगे तो ठीक इसके विपरीत नजर आएगा और यह समझ आ जाएगा कि जिले में स्वच्छता के क्या हालात हैं। साफतौर पर स्वच्छता अभियान को पलीता लगा रहे लोगों ने
भले ही बढ़िया रंगा चंगा बना दिया हो लेकिन अंदर से यह अनैतिक कार्यों का अड्डा बना हुआ है। तस्वीर देखने से पता चलता है कि जिले में स्वच्छता अभियान की धज्जियां कैसे उड़ाई जाती हैं।
दरअसल स्वच्छता अभियान के तहत प्रत्येक गांव, ग्राम पंचायतों में सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया जाना है। जिसके तहत सामुदायिक शौचालय बनाए जा रहे हैं। जिले के कई ग्राम पंचायतों में सामुदायिक शौचालय बन चुके हैं, कई जगह बनाए जा रहे हैं। लेकिन ज्यादातर शौचालयों में ताले लटके हुए हैं। कईयों में तो पंचायत के जिम्मेदार लकड़ी,कंडा इत्यादि रखे हुए हैं। वहीं कई सामुदायिक शौचालय अनैतिक कार्यों का अड्डा बन चुके है। लोग वहां बैठकर शराब आदि का नशा भी करते देखे गए हैं या यह कहा जाए कि सामुदायिक शौचालयों के नाम पर सरकार ने शराब का अहाता खोल दिया है। लोगों के छिपकर नशा करने का एक अड्डा बना दिया गया है। हालांकि इस सब के पीछे का सबसे प्रमुख कारण जो समझ में आता है वह कि ग्रामीण इलाके के लोगों में आज भी जागरूकता की कमी है। स्वच्छता को लेकर लोगों की सोच आज भी पहले जैसे है। इसीलिए वह शौचालयों का उपयोग करने के बजाय खुले मैदान, नदी -तालाब में शौच करते हैं। वही एक वजह यह भी कि क्षेत्र में पानी की कमी है, ज्यादातर शौचालयों में सबसे परेशानी पानी की है। पानी नहीं होने के कारण मजबूरन में शौचालय में तारे लगा दिया गया है। वही लोग अपने घरों से डिब्बा-बाल्टी में पानी लेकर सामुदायिक शौचालय जाने की बजाय मैदान की ओर रुख करते हैं, जिनके घरों में शौचालय बने हैं वह भी उसका उपयोग ना करके उसको एक स्टोर रूम बना दिया है।

(बाहर से सामुदायिक शौचालय)
जिले की करकेली जनपद के ग्राम पंचायत जरहा की ही बात करें तो सामुदायिक शौचालय बाहर से चमकता हुआ दिखाई दे रहा है। जिसे देखकर लगता है कि यहां सारी व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं। लेकिन अंदर झांक कर देखते ही वहां शराब के पउआ, बोतलें, सिगरेट बीड़ी के टुकड़े, अंडे के छिलके ही नजर आएंगे। इसके अलावा निर्माण एजेंसी द्वारा शौचालय का कार्य पूर्ण होना बताया गया है। जबकि बाहर से सिर्फ रंगाई पुताई कर दिया गया है लेकिन अंदर जस का तस है ना तो शौचालय संबंधी कोई व्यवस्था है और ना ही इसे पूरा किया गया है। निर्माण एजेंसी ने इस मामले में भी भ्रष्टाचार करने से शौचालय को भी नहीं छोड़ा है।
(शौचालय के अंदर की तश्वीर)
अब बड़ा सवाल उठता है कि देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमेशा स्वच्छता का संदेश देते-देते इस दुनिया को अलविदा कह गए। जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अभियान को प्रारंभ किया है। और 10शको को बीतने के बाद भी हालात जस के तस हैं। इसके लिए सरकार ने लोंगो के घरों पर मुफ्त शौचालय बनवाए, पीएम आवास के तहत बनने वाले आवासों में शौचालय अति जरूरी है। और इसी के साथ अब प्रत्येक ग्राम पंचायतों में अरबों-खरबों खर्च कर सामुदायिक शौचालय बनवाया जा रहा है, फिर भी स्थिति जस की तस है।
(भ्रस्टाचार की भेंट चढ़ा सामुदायिक शौचालय)
जिले के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव सहित जिला प्रशासन भी इस बात के सख्त निर्देश देने के साथ लोगों से स्वच्छता अपनाने और शौचालयों का उपयोग करने की सलाह और अपील करते देखे गए हैं। लेकिन फिर भी अमल नहीं हो पा रहा है। जरूरत है ऐसे कुछ सख्त कानून या निर्देशों की जिससे लोगों के मन में स्वच्छता के प्रति डर के साथ जागरूकता आए।भले ही शुरुआती दौर में लोंगो के मन में डर के कारण मजबूरन शौचालयों का उपयोग करने लग जाए, परंतु धीरे-धीरे उनकी आदतों में भी यह आ जाएगा।