सरपंच उमा बाई ग्राम पंचायत छोड़ सागर जिले में कर रही मजदूरी,पंचायत में बिचौलियों का राज,कलेक्टर ने दिये जांच के आदेश

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उमरिया (संवाद)। प्रदेश के मुख्यमंत्री मामा शिवराज सिंह चौहान जनता की खुशहाली के हर संभव प्रयास करने के दावे करते नजर आते हैं, गांव के गरीब का विकास और उत्थान के लिए कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं,रोजगार और आजीविका सृजन के लिए भी प्रति माह रोजगार मेले का आयोजन किया जाकर लोगों को रोजगार और स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है। लेकिन आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले के ग्राम पंचायत हर्रवाह की आदिवासी सरपंच के साथ ऐसा क्या हुआ जो उसने पंचायत की सरपंची छोड़कर फसल कटाई करने सागर जिले के खुरई जा पंहुची। परिजनों की माने तो वे बेहद गरीब हैं और आजीविका का कोई साधन नही है गांव में कोई रोजगार भी नही देता लिहाजा सरपंच उमा बाई अपना और परिवार का भरण पोषण करने के लिए आजीविका कमाने कटाई करने सागर गई हैं। सरपंच उमा बाई के घर मे एक बेटा और बेटी हैं जो उसी पर आश्रित हैं।बीते दो माह से सरपंच ग्राम पंचायत में नही है लेकिन बिचौलिए गांव के विकास कार्यों को करा रहे हैं। जानकारों ने इस मामले में एक स्थानीय नेता की मिलीभगत बताई है। वहीं सरपंच पढ़ी लिखी न होने के कारण बिचौलिए भरपूर लाभ उठा रहे है।
मामले की जानकारी के बाद कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने ग्राम पंचायत की जांच के लिए जांच टीम भेजी और सरपंच के न होने की तस्दीक कराने के बाद सरपंच की गैर मौजूदगी में हुए समस्त भुगतानों की जांच और कार्यवाही के निर्देश दिए हैं।
वहीं इस मामले में अब विपक्ष के लोग भी सरकार और प्रशासन पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष ने कहा कि इस सरकार में एक सरपंच जिले से पलायन कर दूसरे शहर में मजदूरी करने गई है।सरकार रोजगार मेला लगाकर बेरोजगारों को रोजगार देने की बात कह रही है, लेकिन एक आदिवासी महिला जोकि सरपंच भी है वह खुद रोजगार की तलाश में दूसरे शहर पलायन कर रही सरकार के लिए शर्मनाक है।
बता दे कि जिले की दोनों विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं और यहां सासंद भी इसी वर्ग से हैं, और इनकी मौजूदगी के बाद भी आदिवासी महिला सरपंच को आजीविका के लिए ठोकर खाना पड़ रहा है, जो प्रदेश सरकार के मुखिया मामा शिवराज सिंह के सपनो पर पानी फेर रहे हैं। पंचायत राज अधिनियम में समाज के वंचितों को आरक्षण का लाभ देकर उन्हें शक्तियां प्रदान कर गांव समाज के विकास में साझेदार बनाने का सपना देखा गया था लेकिन गांव के समझदार लोग अशिक्षित आदिवासी पंचायत प्रतिनिधियों का लाभ उठा रहे हैं।
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