सत्ता और संगठन में तालमेल की कमी, इधर आम चुनाव छोड़ संगठन के चुनाव में जुटी कांग्रेस

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शहर का महासंग्राम शुरू होने को है फिर भी सत्ता, संगठन      और उम्मीदवारों में असमंजस बरकरार 

कौशल विश्वकर्मा, एडिटर इन चीफ। 9893833342
उमरिया (संवाद)। शहरों का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण चुनाव शहर का महासंग्राम शुरू होने को है लेकिन अभी भी सत्ता,संगठन और उम्मीदवारों में असमंजस बरकरार है।
शुरुआत प्रदेश की सत्ताधारी दल से करते हैं जिसमें महत्वपूर्ण जानकारी यह निकलकर सामने आ रही है कि नगरीय निकायों में महापौर व अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराया जाए या अप्रत्यक्ष प्रणाली से? जिसमें सरकार और ना ही उसका संगठन इस बात को तय कर पा रहा है कि क्या किया जाए?

मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लगता है कि अगर महापौर या अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली यानी सीधे जनता के द्वारा चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं। उनका मानना है कि अगर सीधे चुनाव कराया गया तो उनकी पार्टी को नुकसान हो सकता है, और अप्रत्यक्ष रूप से पार्षदों के माध्यम से महापौर और अध्यक्ष का चुनाव कराने में उन्हें फायदा मिलने की उम्मीद है। शायद इसी वजह से उनके द्वारा राज्यपाल को भेजा गया अध्यादेश को वापस कर लिया गया है। हालांकि इसके पीछे की कोई दूसरी वजह भी हो सकती है। वहीं भाजपा संगठन और उसके मुखिया भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा नगरीय निकाय में नगर निगम के महापौर और नगर पालिका,नगर परिषदों के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली यानी सीधे जनता के द्वारा चुनाव कराने के पक्ष में है, और वह इस बात को लेकर संगठन के माध्यम से अड़े हुए हैं। हालांकि इसके पीछे की वजह वही जाने, लेकिन उनका मानना है कि सीधे चुनाव कराने से पार्टी और मजबूत होगी। वही पार्षदों द्वारा महापौर व अध्यक्ष का चुनाव कराने से स्थिति विपरीत होगी। इसके अलावा पार्षदों की खरीद-फरोख्त की समस्या उत्पन्न होगी। वही उनका यह भी मानना है कि उन्हें कोई संदेह नहीं कि उनके पार्टी के पार्षद कम संख्या में जीतेंगे बल्कि ज्यादा से ज्यादा पार्षद उन्हीं के दल के आएंगे। लेकिन समस्या पार्षदों की खरीद फरोख्त और क्रॉस वोटिंग की बनी रहेगी।

सत्ता और संगठन में नहीं बन पा रहा तालमेल
जानकारी के मुताबिक यह बात सामने आ रही है कि प्रदेश में जब से भाजपा संगठन के अध्यक्ष बीडी शर्मा बनाए गए हैं तब से लेकर अभी तक सत्ता यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और संगठन के अध्यक्ष बीडी शर्मा में तालमेल की कुछ कम कमी नजर आती है। हालांकि इसके पहले भी कई मामलों में विरोधाभास की स्थितिउत्पन्न हुई है जो जगजाहिर है। जिसे लेकर इस चुनाव में भी यही एक कारण महत्वपूर्ण माना जा रहा है, कि तालमेल न बैठ पाने से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नगरीय निकाय में महापौर व अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने की सोच रहे तो संगठन के मुखिया वीडियो शर्मा प्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने की बात कह रहे हैं। जिसको लेकर स्थानीय स्तर पर नेताओं व कार्यकर्ताओं पर इसका गहरा असर पड़ता नजर आ रहा है।
स्थानीय नेता व कार्यकर्ताओं पर ज्यादा असर 
सत्ता और संगठन के मुखिया के बिगड़े तालमेल के चलते स्थानीय स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर इसका प्रभाव कुछ ज्यादा ही पड़ रहा है। क्योंकि बड़े नेताओं के चक्कर में वे पिस रहे हैं। चूंकि नगरी निकाय का चुनाव स्थानीय नेताओं को ही लड़ना है और लड़ाना है। जिसमें कई नेता उम्मीदवार होंगे तो कई उनके समर्थक होंगे। ऐसे में वह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे पार्षद का चुनाव लड़कर अध्यक्ष या महापौर बनेंगे, कि सीधे प्रत्यक्ष प्रणाली से जनता के द्वारा चुने जाएंगे? हालांकि अभी भी संसय बरकरार है और जब तक सत्ता व संगठन के मुखिया की एक राय नहीं होगी असमंजस बरकरार रहेगा।
ओबीसी आरक्षण ने नेताओं का बिगाड़ा खेल 
जानकारी के मुताबिक नेताओं का खेल ओबीसी आरक्षण के कारण भी भी बिगाड़ रहा है। क्योंकि पहले से नेताओं का जमा जमाया क्षेत्र इस बार बिगड़ने वाला है, जो जहां चुनाव लड़ने की सोच रहे थे या जिस जगह में वे अपनी पैठ बना चुके थे वह उनके हाथ से फिसलने वाला है। जिससे उनका चुनावी गणित बिगड़ता दिख रहा है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ओबीसी वर्ग के बढ़े हुए आरक्षण प्रतिशत के तहत वार्ड मे पार्षदों की सीटें भी बदलेंगी और महापौर व अध्यक्ष के लिए भी ओबीसी की सीटें सुरक्षित की जाएंगी।

आम चुनाव छोड़ कांग्रेस जुटी संगठन के चुनाव में

 
पूरे मध्यप्रदेश में जहां भाजपा नगरी निकाय व त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जुट चुकी है कई दौर की बैठकें भी की जा चुकी हैं। प्रभारियों के दौरों के बाद चुनावी रूपरेखा तैयार की जा रही है जिसके लिए वार्ड वार चुनाव समिति का गठन अंतिम तौर पर है। वही कांग्रेस इस सब से परे अपने पार्टी का चुनाव कराने में जुटी है। जानकारी के मुताबिक कांग्रेस में काफी समय से संगठन में फेरबदल करने के निर्देश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के द्वारा दिए जा चुके थे। लेकिन जिन्हें चुनाव कराने यह सहमति लेने का जिम्मा सौंपा गया था वह समय से अपना काम नहीं किया। वहीं अब जब नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव सिर पर हैं, तब वह जागे हैं और ब्लॉक से लेकर जिलों में डीआरओ प्रभारियों के द्वारा बैठकों का दौर जारी है। हालांकि इसके पीछे की एक बड़ी वजह यह भी कि पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ को लगता है कि मौजूदा संगठन के दम पर नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव जीतना मुश्किल है। ऐसे में वह नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के पहले संगठन में बड़े स्तर पर फेरबदल करने के मूड में है। देखना होगा इस मकसद में वे कितने सफल हो पाते हैं।
गौरतलब है कि सत्ताधारी दल के सत्ता के मुखिया और संगठन के मुखिया पर आपसी सहमति या तालमेल को लेकर माहौल गर्म है। वहीं स्थानीय निकायों के चुनाव किसकी राय के मुताबिक होंगे और बड़ा सवाल यह कि अगर जिस किसी की राय से महापौर व अध्यक्ष के चुनाव कराए जाएंगे और किन्ही कारणों से पार्टी को नुकसान हुआ तो ठीकरा भी उसी के साथ फूटेगा? रही बात स्थानीय स्तर के नेताओं और उम्मीदवारों की तो आरक्षण प्रक्रिया के बाद उनकी और उनके वार्डों सहित महापौर व अध्यक्षों की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि कौन सी सीट किस वर्ग के लिए आरक्षित है। जिससे वे अपने तरीके से अपनी नई जमावट करने में जुट जाएंगे।
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