In this whole incident, questions are raised on the role of Bandhavgarh Management, whose biggest responsibility is to monitor the tigers continuously, but here the tigers die and the management is not aware. After the death of the tiger, when their carcass starts to decompose in two-four days, then the patrol team passing by its smell and the passerby comes to know that there is a smell of rotting of an animal here, then the management should be informed about any wild animal. When the information about the death of the creature comes, then only the ears of the management stand up.
उमरिया/बांधवगढ़ (संवाद)। प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह के बांधवगढ़ दौरे के दौरान बाघो की मौत का सिलसिला शुरू हो गया है, जिले के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बीते 2 दिन में दो बाघों की मौत से हड़कंप मचा हुआ है।

बता दें कि बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व में पिछले 3 दिन पहले एक 6-7 माह का मादा शावक धमोखर रेंज के बरबसपुर बीट में मृत अवस्था में गश्ती दल को मिला था। जिसके बाद प्रबंधन द्वारा बताया गया था कि शावक की मौत बाघों के ऑफिस संघर्ष के कारण मादा शावक की मौत हुई है, जिसके बाद से ही प्रबंधन सवालों के घेरे में था। वही 27 अप्रैल को फिर एक बाघिन का शव धमोखर रेंज के ही ददरौदी बीट में मिला है। बाघिन का शव क्षत-विक्षत अवस्था में मिला है। इसके बाद बांधवगढ़ के आला अधिकारियों को जानकारी दी गई, जानकारी के बाद मौके पर पहुंचे बांधवगढ़ प्रबंधन के क्षेत्र संचालक सहित तमाम अधिकारी पशु चिकित्सक एवं एनटीसीए के मेंबर के सामने बाघिन के शव का पीएम कराया गया और सैंपल एकत्र किया गया। जिसके बाद बाघिन के शव का शवदाह कराया गया।
लेकिन इस बार प्रबंधन अपने रटे रटाये बयान देने के बजाय कि बाघों के आपसी संघर्ष का मामला ना बता कर सिर्फ बाघिन की उम्र और पीएम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के कारणों का पता चल सकेगा, कहकर मामले से इतिश्री कर ली।
दरअसल 26 अप्रैल से प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह बांधवगढ़ के दौरे पर हैं और वह दो से तीन दिन बांधवगढ़ के प्रवास पर रहेंगे लेकिन उनके आते ही एक के बाद एक बाघों की मौत हो रही है हालांकि बाघों की कब और कैसे मौत हुई यह प्रबंधन को नहीं पता क्योंकि उनके शव क्षत-विक्षत स्थिति में देखे जा रहे हैं। हालांकि यह भी कहना की वन मंत्री के आगमन के दौरान यह घटना से मंत्री का कोई कनेक्शन लाजमी नहीं है। यह महज इत्तेफाक है। हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि बांधवगढ़ का पूरा अमला जंगल और वन्य प्राणियों को छोड़ मंत्री जी को खुश करने के लिये आवभगत में लगा हुआ है।
इस पूरे घटनाक्रम में बांधवगढ़ प्रबंधन की भूमिका पर सवाल खड़े होते हैं बांधवगढ़ प्रबंधन जिन्हें सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह कि बाघों की सतत निगरानी करना उनकी देखरेख करना है लेकिन यहां तो बाघ मर जाते हैं और प्रबंधन को पता ही नहीं रहता। बाघ की मौत के बाद जब उनका शव दो-चार दिन में सड़ने-गलने लगता है तब उसकी गंध से वहां गुजरने वाले गश्ती दल और राहगीर को जानकारी होती है कि इधर किसी जानवर के सड़ने की बदबू आ रही है, तब प्रबंधन को किसी वन्य प्राणी की मौत की जानकारी हो पाती है, तब जाकर प्रबंधन के कान खड़े होते हैं।
इससे साफ जाहिर होता है कि जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाने में कसर लगा रहे हैं वे अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन हैं।और यही कारण है कि बांधवगढ़ में बाघ सहित अन्य जानवरों की असमय मौत हो रही है।