कौशल विश्वकर्मा, एडिटर इन चीफ। 9893833342
भोपाल उमरिया (संवाद)। नगरीय निकायों के चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जल्द चुनाव कराने के निर्देश के बाद राज्य सरकार चुनाव प्रक्रिया पर अमल शुरू कर दिया है। वहीं नगरीय निकाय के महापौर और अध्यक्ष का चुनाव कराने के लिए असमंजस की स्थिति बरकरार थी कि नगर निगम महापौर और नगर पालिका, नगर परिषदों के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होगा या अप्रत्यक्ष प्रणाली से होगा। लेकिन अब यह साफ हो गया है कि महापौर और अध्यक्ष का चुनाव आप्रत्यक्ष प्रणाली से होगा यानी चुने हुए पार्षद ही महापौर व अध्यक्ष को चुन सकेंगे। अब सीधे महापौर और अध्यक्ष का चुनाव नहीं होगा। इसके पहले महापौर और अध्यक्ष का चुनाव सीधे होता था जिसमें जनता के वोटों से चुना जाता था।
कमलनाथ सरकार ने बदला था नियम
जानकारी के मुताबिक प्रदेश में 15 महीने रही कमलनाथ सरकार ने जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से महापौर और अध्यक्ष के चुनाव पर रोक लगाते हुए अप्रत्यक्ष प्रणाली यानी पार्षदों के द्वारा महापौर व अध्यक्ष के चुने जाने का अध्यादेश लाया था। जिसके बाद प्रदेश में दो नगरीय निकायों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से किया जा चुका है। अब हाल ही में संपन्न होने वाले नगरीय निकाय के चुनाव में भी पार्षद ही महापौर और अध्यक्ष को चुनेंगे।
शिवराज सरकार कराना चाहती थी सीधे चुनाव
नगरीय निकायों के चुनाव की सरगर्मी तेज होने के बाद शिवराज सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से होने वाले चुनाव के नियम को बदलने के लिए एक अध्यादेश राज्यपाल के पास भेजा था। जिसके बाद अब जानकारी मिल रही है कि वह अध्यादेश को सरकार ने वापस ले लिया है। जिसके बाद से यह साफ हो गया है कि प्रदेश में होने वाले नगरीय निकायों के चुनाव में अब पार्षद ही महापौर व अध्यक्ष को चुनेंगे। कुछ औपचारिकताएं शेष हैं जिन्हें पूरा कर लिया जाएगा।
महापौर व अध्यक्ष बनने के लिए जीतना होगा पार्षद का चुनाव
नगरीय निकायों के चुनाव में जो भी लोग अपने आप को महापौर या अध्यक्ष का दावेदार मान कर चल रहे थे, अब उन्हें पहले पार्षद का चुनाव जीतना पड़ेगा। पार्षद के चुनाव जीतने के बाद वह महापौर व अध्यक्ष की दावेदारी ठोक सकेंगे।
जितना छोटा चुनाव उतनी बड़ी मशक्कत
कहते हैं कि जितना छोटा चुनाव होता है उतनी ज्यादा मशक्कत करना पड़ता है। वही एक-एक बोट और एक-एक व्यक्ति को बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है। वही बड़े चुनाव में कुछ जगह नाराजगी और कई क्षेत्र को नजरअंदाज भी करना पड़े तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन पार्षद बनना मतलब अपने वार्ड मोहल्ले का चुनाव ऐसे में यह बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि इन्ही लोगो के बीच अपना पूरा समय बीतता है। यह सभी लोग आपको व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। ऐसे में दलगत राजनीति से अलग आपके व्यक्तित्व का चुनाव हो जाता है।
पार्षदों की होगी चांदी
देखा जाए तो जितने भी चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होते हैं या जिन्हें पार्षद या सदस्य चुनकर अध्यक्ष बनाते हैं। वह सीधे तौर पर एक डील करके उन्हें चुनते हैं। फिर डील चाहे पैसे की हो या कुछ और लेकिन ऐसे चुनाव में पार्षदों व सदस्यों की चांदी हो जाती है। हालांकि कुछ हद तक जो पार्टी के पार्षद होंगे उन्हें पार्टी के साथ जाना पड़ेगा। कुछ पार्षदो को जरूर खरीद-फरोख्त के जरिए अपने समर्थन में लाया जाता है। हालांकि कुछ दावेदारों का कहना है कि अगर सीधे भी चुनाव होते तो भी पैसा खर्च करना पड़ता लेकिन अब जब पार्षद के द्वारा अध्यक्ष या महापौर का चुनाव होना है तब वही पैसा उन पार्षदों को देने में कोई हर्ज नही है।
गौरतलब है कि पार्टी के कई बड़े नेता होने वाले नगरी निकाय के चुनाव में महापौर अध्यक्ष बनने का ख्वाब देख रहे थे लेकिन अब उनके ख्वाबों पर पानी फिरता नजर आ रहा है क्योंकि अब महापौर या अध्यक्ष बनने के लिए उन्हें पार्षद बनना पड़ेगा जो बहुत ही टेढ़ी खीर है देखा जाए तो नेता बड़े नेता जरूर बन जाते हैं लेकिन अपने मोहल्ले में उनकी बखत ज़ीरो होती है।
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