बाँधवगढ़ 2010: झुरझुरा की मशहूर बाघिन की दास्तां,किस मंत्री पुत्रों को बचा रहा था प्रबंधन, 12 साल बीतने के बाद भी दोषियों को नही मिली सजा

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बाँधवगढ़ (संवाद)। 18 मई 2010 को वाहन की ठोकर से घायल हुई झुरझुरा वाली बाघिन की 19 मई को मौत हो गई पीएम आदि करा कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया और 20 मई से इस पूरे घटनाक्रम की जांच शुरू हुई। जैसे ही जैसे तारीखें बदल रही थी वैसे ही वैसे यह पूरा मामला हाई प्रोफाइल होता चला गया इसके पीछे एक सबसे बड़ी वजह यह भी थी कि इस पूरे घटनाक्रम जब से बाघिन वाहन की ठोकर से घायल हुई है से लेकर उसकी मौत के बीच की पूरी जानकारी प्रबंधन के ही लोगों के बीच रही है। इसलिए इस पूरे मामले को खोल पाना चुनौती बन गया था। इधर जैसे ही जांच शुरू हुई उसके दूसरे दिन यानी 21 मई को जिले के जिला पंचायत सीईओ अक्षय कुमार सिंह, जनपद सीईओ के के पांडे और बांधवगढ़ के ही रेंजर ललित पांडे का नाम आ गया।
जांच टीम के द्वारा इन अधिकारियों के ड्राइवरों को पकड़कर पूछताछ शुरू कर दी गई लेकिन उससे कुछ हासिल नहीं हो सका जिसके बाद जांच टीम ने सख्ती बरतना शुरू कर दिया रेंजर ललित पांडे के ड्राइवर रहे वन कर्मी मानसिंह को कई दिनों से टीम ने बंधक बनाकर रखा था। 4 दिन बाद मान सिंह की पत्नी बंधक बनाए जाने की शिकायत कलेक्टर श्याम सिंह कुमरे से कर दी।
बांधवगढ़ प्रबंधन की पूरी जांच इन्हीं अधिकारियों की इर्द-गिर्द घूमती रही जबकि उन्हें जांच का दायरा और भी बढ़ाया जाना चाहिए था। प्रबंधन को जांच करते हुए 5-6 दिन बीते थे कि उस समय इस पूरे मामले में एक्टिव मीडिया ने अपनी खोज से घटना के दौरान बांधवगढ़ में मंत्री पुत्र की सफारी और नाइट सफारी फिर अचानक घटना के दिन यहां से भाग जाने की जानकारी निकाल कर प्रकाशित की थी। मीडिया ने यहां से लेकर पूरे देश भर में इस खबर को प्रमुखता से चलाया और देखते ही देखते झुरझुरा वाली बाघिन की मौत का मामला जिले के वरिष्ठ अधिकारियों से होता हुआ प्रदेश के मंत्री पुत्रों के नाम आने के बाद  इस पूरे मामले को अब हाईप्रोफाइल मान लिया गया। मीडिया ने जानकारी उपलब्ध कि दिनांक 17 मई 2010 से 20 मई 2010 तक मध्यप्रदेश के तत्कालीन पर्यटन मंत्री तुकोजी राव पवार के बेटे और उनके मित्र बांधवगढ़ में मौजूद थे। वह लोग एमपीटी के होटल में कमरा 3 दिन के लिए बुक कराया था और 3 दिन में 6 सफारी सुबह-शाम मिलाकर बुक कराई गई थी।

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बाँधवगढ़ (संवाद)। 18 मई 2010 को वाहन की ठोकर से घायल हुई झुरझुरा वाली बाघिन की 19 मई को मौत हो गई पीएम आदि करा कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया और 20 मई से इस पूरे घटनाक्रम की जांच शुरू हुई। जैसे ही जैसे तारीखें बदल रही थी वैसे ही वैसे यह पूरा मामला हाई प्रोफाइल होता चला गया इसके पीछे एक सबसे बड़ी वजह यह भी थी कि इस पूरे घटनाक्रम जब से बाघिन वाहन की ठोकर से घायल हुई है से लेकर उसकी मौत के बीच की पूरी जानकारी प्रबंधन के ही लोगों के बीच रही है। इसलिए इस पूरे मामले को खोल पाना चुनौती बन गया था। इधर जैसे ही जांच शुरू हुई उसके दूसरे दिन यानी 21 मई को जिले के जिला पंचायत सीईओ अक्षय कुमार सिंह, जनपद सीईओ के के पांडे और बांधवगढ़ के ही रेंजर ललित पांडे का नाम आ गया।जांच टीम के द्वारा इन अधिकारियों के ड्राइवरों को पकड़कर पूछताछ शुरू कर दी गई लेकिन उससे कुछ हासिल नहीं हो सका जिसके बाद जांच टीम ने सख्ती बरतना शुरू कर दिया रेंजर ललित पांडे के ड्राइवर रहे वन कर्मी मानसिंह को कई दिनों से टीम ने बंधक बनाकर रखा था। 4 दिन बाद मान सिंह की पत्नी बंधक बनाए जाने की शिकायत कलेक्टर श्याम सिंह कुमरे से कर दी।बांधवगढ़ प्रबंधन की पूरी जांच इन्हीं अधिकारियों की इर्द-गिर्द घूमती रही जबकि उन्हें जांच का दायरा और भी बढ़ाया जाना चाहिए था। प्रबंधन को जांच करते हुए 5-6 दिन बीते थे कि उस समय इस पूरे मामले में एक्टिव मीडिया ने अपनी खोज से घटना के दौरान बांधवगढ़ में मंत्री पुत्र की सफारी और नाइट सफारी फिर अचानक घटना के दिन यहां से भाग जाने की जानकारी निकाल कर प्रकाशित की थी। मीडिया ने यहां से लेकर पूरे देश भर में इस खबर को प्रमुखता से चलाया और देखते ही देखते झुरझुरा वाली बाघिन की मौत का मामला जिले के वरिष्ठ अधिकारियों से होता हुआ प्रदेश के मंत्री पुत्रों के नाम आने के बाद  इस पूरे मामले को अब हाईप्रोफाइल मान लिया गया। मीडिया ने जानकारी उपलब्ध कि दिनांक 17 मई 2010 से 20 मई 2010 तक मध्यप्रदेश के तत्कालीन पर्यटन मंत्री तुकोजी राव पवार के बेटे और उनके मित्र बांधवगढ़ में मौजूद थे। वह लोग एमपीटी के होटल में कमरा 3 दिन के लिए बुक कराया था और 3 दिन में 6 सफारी सुबह-शाम मिलाकर बुक कराई गई थी।उस समय पर यह जानकारी मिली थी कि 18 मई की सुबह और शाम मंत्री पुत्र और उनके मित्र सफारी में कहते हैं यह भी लोगों ने बताया था कि 18 की शाम मंत्री पुत्र ने निर्धारित समय से सफारी करके वापस आ गए थे और एक घंटा बाद लगभग 7 से 7:30 के बीच वह लोग लोग पुनः नाइट सफारी के लिए अनाधिकृत रूप से जंगल में प्रवेश किया था। नाइट सफारी के दौरान जंगल मे क्या हुआ यह तो नहीं पता क्योंकि यह जांच का विषय था। लेकिन 19 मई को वह अचानक अपने 3 बुक सफारी को छोड़कर यहां से गायब हो गए। मीडिया के द्वारा होटल एमपीटीे जाकर जब यह जानकारी ली तब वहां मौजूद मैनेजर ने भी यह बात स्वीकार की थी। इसके अलावा जिस जिप्सी से वह सभी सफारी करने गए थे उसके ड्राइवर ने भी इस बात की जानकारी दी थी। चूंकि वह पर्यटन मंत्री के पुत्र थे और उनका वीआईपी दौरा माना जा रहा था इसलिए यहां के जांच अधिकारी के द्वारा उनके बारे में और उनसे  पूंछतांछ करना और उनके वाहन की जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। इसके अलावा वह जांच में भी इन बिंदुओं को जोड़ने से बचते रहे।इसी दौरान एक और मंत्री पुत्र का बांधवगढ़ में सफारी करना बताया गया था जिसमें तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह के पुत्र का नाम सामने आया था। जांच टीम ने उनसे भी जांच के संबंध में कोई पूछताछ नहीं की। हालांकि बाद में मंत्री नागेंद्र सिंह के पुत्र ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस बात को गलत ठहराया था कि  वह बाघिन के एक्सीडेंट और मृत्यु के दौरान बांधवगढ़ में थे। जबकि उनके द्वारा साफ तौर पर यह कहा गया कि उस दौरान वे बांधवगढ़ में थे ही नहीं, और अगर वह इस घटना में शामिल होते या इस संबंध में उन्हें कुछ भी पता होता तो वह आगे आकर स्वयं इसकी पूरी जानकारी दे देते।आगे क्या हुआ? इसकी जानकारी हम आगे उपलब्ध कराएंगे।-आखिर कौन नहीं चाहता था इस मामले की सीबीआई जांच,-संदेही अधिकारी अचानक ट्रांसफर कराकर क्यो भागे,-कौन अधिकारी अपने वाहन की आज तक नही कराई जांच,घटना के दिन रातो रात गाड़ी जबलपुर भेजकर कराई सफाईसहित तमाम मुद्दों पर खबरें रहेगी जारी
उस समय पर यह जानकारी मिली थी कि 18 मई की सुबह और शाम मंत्री पुत्र और उनके मित्र सफारी में कहते हैं यह भी लोगों ने बताया था कि 18 की शाम मंत्री पुत्र ने निर्धारित समय से सफारी करके वापस आ गए थे और एक घंटा बाद लगभग 7 से 7:30 के बीच वह लोग लोग पुनः नाइट सफारी के लिए अनाधिकृत रूप से जंगल में प्रवेश किया था। नाइट सफारी के दौरान जंगल मे क्या हुआ यह तो नहीं पता क्योंकि यह जांच का विषय था। लेकिन 19 मई को वह अचानक अपने 3 बुक सफारी को छोड़कर यहां से गायब हो गए। मीडिया के द्वारा होटल एमपीटीे जाकर जब यह जानकारी ली तब वहां मौजूद मैनेजर ने भी यह बात स्वीकार की थी। इसके अलावा जिस जिप्सी से वह सभी सफारी करने गए थे उसके ड्राइवर ने भी इस बात की जानकारी दी थी। चूंकि वह पर्यटन मंत्री के पुत्र थे और उनका वीआईपी दौरा माना जा रहा था इसलिए यहां के जांच अधिकारी के द्वारा उनके बारे में और उनसे  पूंछतांछ करना और उनके वाहन की जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। इसके अलावा वह जांच में भी इन बिंदुओं को जोड़ने से बचते रहे।

इसी दौरान एक और मंत्री पुत्र का बांधवगढ़ में सफारी करना बताया गया था जिसमें तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह के पुत्र का नाम सामने आया था। जांच टीम ने उनसे भी जांच के संबंध में कोई पूछताछ नहीं की। हालांकि बाद में मंत्री नागेंद्र सिंह के पुत्र ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस बात को गलत ठहराया था कि  वह बाघिन के एक्सीडेंट और मृत्यु के दौरान बांधवगढ़ में थे। जबकि उनके द्वारा साफ तौर पर यह कहा गया कि उस दौरान वे बांधवगढ़ में थे ही नहीं, और अगर वह इस घटना में शामिल होते या इस संबंध में उन्हें कुछ भी पता होता तो वह आगे आकर स्वयं इसकी पूरी जानकारी दे देते।
आगे क्या हुआ? इसकी जानकारी हम आगे उपलब्ध कराएंगे।
-आखिर कौन नहीं चाहता था इस मामले की सीबीआई जांच,
-संदेही अधिकारी अचानक ट्रांसफर कराकर क्यो भागे,
-कौन अधिकारी अपने वाहन की आज तक नही कराई जांच,घटना के दिन रातो रात गाड़ी जबलपुर भेजकर कराई सफाई
सहित तमाम मुद्दों पर खबरें रहेगी जारी
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