बड़ी खबर: राष्ट्रीय स्तर पर बढेगा जिले का मान, जोधइया बाई बैगा को मिलेगा नारी शक्ति गौरव पुरुस्कार

Editor in cheif
6 Min Read
कौशल विश्वकर्मा, उमरिया।
(संवाद)। आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिला अब राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाएगा। कल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम में उमरिया जिले का गौरव बढ़ने वाला है।
बता दें कि उमरिया जिले की अंतरराष्ट्रीय चित्रकार 80 वर्षीय बैगा आदिवासी जोधइया बाई बैगा जिसे लोग जोधइया अम्मा के नाम से जानते हैं, को 8 मार्च को दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया जाएगा और जोधइया बाई को राष्ट्रीय नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा जाएगा।
गौरतलब है कि बैगा आदिवासी कलाकार जोधइया अम्मा को प्रशासनिक व पुलिस सत्यापन के बाद प्रशासनिक माध्यम से उमरिया से दिल्ली ले जाया गया है। जहां उन्हें राष्ट्रीय कार्यक्रम में सम्मानित किया जाएगा। जोकि पूरे जिले के लिए एक गौरव की बात है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कर चुकी है अपनी कला का प्रदर्शन जिले के ग्राम लोढ़ा निवासी बैगा आदिवासी 80 वर्षीय जोधइया बाई ने अपने कला के माध्यम से भारत देश के विभिन्न महानगरों सहित विदेशों में भी अपने बैैगा आदिवासी कला का प्रदर्शन कर चुकी है। उनकी कला में खासकर विलुप्त की कगार पर पहुंच चुके बैगा आदिवासी की परंपरागत चित्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। इसके अलावा उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सम्मानित कर चुके हैं। दिल्ली स्थित भारत भवन व इंदिरा गांधी जनजाति संग्रहालय में उनकी प्रदर्शनी कई बार लग चुकी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इटली के मिलान शहर और फ्रांस में उनके कला की प्रदर्शनी आज भी लगी हुई है। इतना ही नहीं जोधइया बाई बैगा का नाम पिछले वर्ष में पद्मश्री के लिए भी नामांकित किया गया था। हालांकि दुर्भाग्यवश उन्हें वह पुरस्कार नहीं मिल सका। लेकिन देर सवेर उनकी कला को सराहा गया और राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें अब राष्ट्रीय मातृशक्ति पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है।
जिंदगी के आखरी पड़ाव में शुरू की पेंटिंग
जोधइया बाई बैगा की उम्र लगभग 80 साल के ऊपर है वे 70 साल तक लोंगो के खेत बाड़ी में बनी मजदूरी करने के बाद बकरी चराने का काम किया। जोधइया कभी सपने में भी नही सोची रही होगी कि उम्र के आखरी पड़ाव 70 वर्ष की उम्र में जो अनपढ़ हो कभी किताब न छुए हो और चित्रकारी के माध्यम से कोई अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बना ले असंभव सा लगता है लेकिन इस असंभव को जोधइया ने संभव कर दिखाया है और दुनिया मे अपनी कला का लोहा भी मनवा चुकी है।जोधइया बाई द्वारा विगत 10 दस वर्षों में तैयार किए गए चित्रों के विषय पुरानी भारतीय पंरपरा में देवलोक की परिकल्पना, भगवान शिव तथा बाघ पर आधारित हैं। इनमें पर्यावरण एवं वन्य जीव के महत्व को प्रदर्शित किया जाता है।
स्वर्गीय आशीष स्वामी का सपना होगा साकार
 
उमरिया के कैम्प निवासी प्रतिष्ठित स्वामी परिवार के सदस्य कलानिकेतन से फाइन आर्ट में मास्टर डिग्री प्राप्त स्वर्गीय आशीष स्वामी का सपना साकार होने वाला है। आशीष स्वामी चेन्नई में फाइन आर्ट की पढ़ाई के बाद दिल्ली और मुंबई में अपने कैरियर की शुरुआत की, जिसके बाद उन्हें पेंटिंग में बड़ी महारत हासिल हुई। मुंबई में उनकी पेंटिंग लाखों में बिका करती थी। लेकिन उनके अंदर इस आदिवासी उमरिया जिले को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की ललक उनके मन बनी रही और वे मुंबई छोड़कर उमरिया आ गए। जिसके बाद उन्होंने ग्राम लोढा में अपना स्टूडियो बनाकर प्रतिदिन आना-जाना करने लगे। इस बीच उन्होंने पहली बार जोधइया बाई बैगा को वही गांव में बकरी चराते हुए देखा इसके बाद धीरे-धीरे वह उनके संपर्क में आई और जान पहचान हुई। कहते हैं कि कला छिप नहीं सकती और हुआ भी वही। आशीष स्वामी ने जोधइया बाई को पेंटिंग के बारे में बताया तब जोधइया ने अपने परंपरागत बैगा आर्ट को भित्ति चित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया। और इसी के बाद सिलसिला शुरू हो गया। उसके बाद जोधइया ने बकरी चराना छोड़ अपने हाथों में ब्रश स्याही थाम ली।
आशीष ने दिलाई आदिवासी बैगा चित्रकला को अंतरराष्ट्रीय पहचान 
बैगा आदिवासी जोधइया बाई और उसकी 3 सहेलियां जिसमें जोधइया, प्रेमियों और झूलन ने  एक साथ पेंटिंग करना शरू की, और हाथों में ब्रश पकड़कर कैनवास पर आदिवासी कला को उकेरना प्रारंभ किया। धीरे-धीरे उनके द्वारा निर्मित बैगा ट्राईबल आर्ट को आशीष स्वामी ने प्रदेश-देश और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। जहां पर इन आदिवासी चित्रों को काफी सराहा गया।अब जोधइया के साथ सिर्फ झूलन ही रह गई है, प्रेमिया की मृत्यु कुछ साल पहले हो चुकी है।
बता दें कि पिछले वर्ष पूरी दुनिया सहित भारत में भी कोरोना के रूप में आई आपदा से ग्रसित होने के कारण जिले के महान चित्रकार आशीष स्वामी का दुखद निधन हो गया था। उनके इस दुनिया से चले जाने का सबसे ज्यादा दुख उनके परिवार और इन आदिवासियों को हुआ था, मानो उनके चले जाने  से ये सब अनाथ जैसे हो गए थे। लेकिन इसके बाद स्वामी परिवार के सदस्यों ने इसे आगे बढ़ाने का प्रयास किया और बकायदे लोढा स्थित आशीष स्वामी के स्टूडियो को उसी तरह  सुबह से खोलना शुरू किया गया, जिसके बाद यहां पर सभी बैगा आदिवासी कलाकार  पेंटिंग बनाने फिर से आने लगे और स्व गुरु आशीष स्वामी के द्वारा देखे गए सपने को साकार करने में आज भी जुटे हुए हैं।
Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *