पीएम मोदी का मिशन एमपी,संत रविदास के जरिए दलितों को लुभाने में जुटी बीजेपी,100 करोड़ की लागत से बनेगा संत रविदास मंदिर

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सागर (संवाद)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 12 अगस्त को मिशन एमपी के दौरे पर हैं, जहां वह 14 वीं सदी के रहस्यवादी कवि और समाज सुधारक संत रविदास को समर्पित 100 करोड़ रुपये के मंदिर की आधारशिला रखने के लिए चुनावी राज्य मध्य प्रदेश के सागर जिले का दौरा करने का कार्यक्रम है। जिसके बाद एक सार्वजनिक बैठक और जनसभा के कार्यक्रम में शामिल होंगे। इसके अलावा मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई केंद्रीय मंत्री बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री शामिल रहेंगे।
मध्यप्रदेश में सत्ता में लौटने के लिए भाजपा को कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 1 जुलाई को शहडोल की यात्रा के बाद, एक महीने से अधिक समय में मोदी की यह दूसरी मध्यप्रदेश की यात्रा होगी। बीजेपी नेताओं ने बताया कि वे पीएम की रैली और मंदिर समारोह में 2 लाख लोगों के शामिल होने की उम्मीद कर रहे हैं, जो दलितों तक पहुंचने के लिए बीजेपी की ‘समरसता (सद्भाव) यात्रा’ की परिणति का प्रतीक होगा। ऐसी पांच यात्राएं 25 जुलाई को राज्य के विभिन्न हिस्सों से शुरू हुईं और भाजपा के अनुसार, “53,000 गांवों से मिट्टी और 315 जल निकायों से पानी इकट्ठा करने” के साथ सागर में समाप्त होंगी।
संत रविदास को दलितों के बीच बड़ी संख्या में अनुयायी प्राप्त हैं और इस साल की शुरुआत में, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संत के जीवन और कार्यों का जश्न मनाने के लिए ‘संत रविदास महाकुंभ’ का आयोजन किया था, साथ ही उनके शिष्यों को उनके जन्मस्थान तक ले जाने के लिए एक विशेष तीर्थयात्रा ट्रेन की घोषणा की थी। वहीं सीएम शिवराज सरकार ने सतना जिले के मैहर में 3.5 करोड़ रुपये का संत रविदास मंदिर भी बनवाया है।
प्रदेश की आबादी में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी लगभग 17% है, माना जाता है कि संत रविदास के अनुयायी उनमें सबसे बड़ा हिस्सा हैं। राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 35 दलितों के लिए आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 18 सीटें जीती थीं, जबकि 17 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं थीं। एससी/एसटी अधिनियम को कथित तौर पर कमजोर किए जाने को लेकर विरोध प्रदर्शन और सरकार की कार्रवाई को 2018 में दलित वोटों को भाजपा से दूर करने के रूप में देखा गया था। जिससे उसके द्वारा जीती गई एससी-आरक्षित सीटों की संख्या में गिरावट आई थी।
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