गुजरात फार्मूले से लड़ा जाएगा एमपी का विस चुनाव,60 साल से ज्यादा और 3 बार से विधायक होंगे बाहर

Editor in cheif
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एमपी (संवाद)। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव इसी साल 2023 के अक्टूबर और नवंबर के बीच संपन्न कराया जाएगा। जिसमें भाजपा अभी से मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के लिए रणनीति तैयार करने में जुटी है।इस बार भाजपा मध्यप्रदेश में हाल ही में हुए गुजरात चुनाव के पैटर्न पर चुनाव लड़ने के मूड में है। जिस तरीके से गुजरात चुनाव में भाजपा की सोची-समझी रणनीति के तहत विधानसभा में ऐतिहासिक जीत हासिल कर एक रिकॉर्ड बना दिया है। जिसके बाद अब भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व अब मध्यप्रदेश सहित इसके साथ होने वाले अन्य प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में गुजरात की तर्ज पर लड़ने की योजना बनाई है। इसके लिए बीते दिनों राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक भी दिल्ली में आयोजित की गई थी जिसमें प्रमुख रुप से आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर मंथन किया गया है।
राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के बाद जो जानकारी सूत्रों के हवाले से मिल रही  वह यह कि  मध्यप्रदेश में भी गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव के तर्ज पर चुनाव लड़ा जाएगा इसके लिए 60 साल उम्र का दायरा तो निश्चित किया गया है इसके अलावा तीन बार से विधायक का चुनाव लड़ रहे और उस सीट से जीत रहे प्रत्याशी के लिए भी खतरे की घंटी है। राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में इस बात का उल्लेख किया गया कि तीन बार से एक ही सीट से लड़ने वाले विधायकों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी भी चुनाव में विपरीत प्रभाव डाल सकती है इसलिए तीन बार से ज्यादा के विधायकों की टिकट भी खतरे में है इसके लिए एक रणनीति यह भी पता चली है कि इसके लिए संगठन विधायकों की सीट इधर से उधर कर सकती है।
वही इस बार भाजपा के प्रति मध्य प्रदेश के तमाम क्षेत्र से जो फीडबैक मिल रहा है वही उनके विपरीत समझ आता है हालांकि यह फीडबैक भाजपा  समय रहते संभाल लेगी। लेकिन कई विधायकों के लिए टिकट रिपीट करना भाजपा को नुकसान हो सकता है।
60 साल पार नेताओं की दावेदारी पर संदेह
मिली जानकारी के मुताबिक पार्टी की सबसे ज्यादा नजर तीन बार से ज्यादा बार के विधायकों, 60 पार कर चुके नेताओं और उन खास लोगों पर है, जिनके चलते पार्टी को नुकसान की आशंका है। पार्टी में यह भी राय बन रही है कि जिन नेताओं की छवि अच्छी नहीं है या जनता में नाराजगी है, उनसे चुनाव से लगभग दो माह पहले ही यह ऐलान करा दिया जाए कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। ऐसा करने पर एंटीइंकम्बेंसी को कम किया जा सकेगा। इसके बाद तीन बार के विधायकों और अन्य पर फैसला हो। इसमें पार्टी को बगावत की आशंका है, मगर पार्टी जोखिम लेने को तैयार है। इसकी भी वजह है, क्योंकि पार्टी को इतना भरोसा है कि जिनके टिकट कटेंगे, उनमें से मुश्किल से पांच फीसदी ही नेता ऐसे होंगे, जो दल बदल करने का जोखिम लेंगे।
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