ऐतिहासिक धरोहर मढ़ीबाग, अब उपेक्षा का शिकार

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कौशल विश्वकर्मा, (संवाद) उमरिया। 
जिले में धरोहरों के नाम से कुछ चिन्हित धरोहरे ही है, जिन्हें लोग बेहतर जानते है,जिसमे से एक है ऐतिहासिक मढ़ीबाग। जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर पर स्थित है मढ़ीबाग जाने के लिए उमरिया से शहपुरा रोड पर 4 किलोमीटर चलने के बाद बाये तरफ मुड़ने फिर 1 किमी आगे अमडी रोड पर स्थित है।हालांकि प्रशासनिक रखरखाव व पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार यह स्थान शुरु से रहा है।

मढ़ीबाग का संक्षिप्त विवरण:

भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर मढ़ीबाग का निर्माण काल लगभग 14 वीं शती ईसवी का है, जिसे पाण्डवों ने बनाया था। ऊंचे अधिष्ठान पर स्थित पूर्वा विमुख यह मंदिर नागर शैली में निर्मित पंचस्थ प्रकार का है। मंदिर का निर्माण बड़े दानेदार बलुआ प्रस्तर से किया गया है। मंदिर, गर्भगृह अंतराल तथा मंडप में विभक्त है, मंदिर के प्रवेश द्वार के सिरदल के मध्य नटराज, शिवदायी,माता सरस्वती और भगवान गणेश का अंकन है। द्वार शाखा में मिथुन दृश्यों का शिल्पन किया गया है, नीचे परिचारिकाओं सहित नंदी देवी, गंगा यमुना का शिल्पन, उनके वाहन मकर व कच्छप के साथ किया गया है। गर्भ ग्रह जलहरी युक्त शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की बाहय भित्ति पर दो तलो  में प्रतिमाएं शिल्पित है। मुख्य रूप से दक्षिण भित्ति के बाह्य भाग के प्रकोष्ठ में अष्टभुजी त्रिपुरान्तक शिव, चतुर्भुजी स्थानक शिव, विष्णु रुद्र व चतुर्मुखी ब्रह्मा व नायिकाओं की प्रतिमाएं हैं। दूसरी पंक्ति में चतुर्भुजी भैरव, मिथुन अग्नि, वीणापाणि सरस्वती, नायिकाएं व गज शार्दुल की मूर्तियां हैं, मंदिर के ऊपरी भित्ति ने ब्रह्मा, रूद्र, नर्सिंग, अप्सराए शिल्पित है,भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक धरोहर है।

ऐतिहासिक पहलू

मढ़ीबाग में उमरिया निवासी बाबा बालक दास (मन्नू) का सगरा मंदिर में प्रतिदिन सुबह से पूजा पाठ करने का सिलसिला जारी था, कि 1 दिन एक सिद्ध पुरुष ने उनसे कहा कि तुम मढ़ीबाग मंदिर जाओ और वहां की देखरेख करो, उस दिन से बाबा बालक दास मढ़ीबाग मंदिर जाने लगे, कुछ दिन जाने के बाद वह वही रहने भी लगे। उस समय मढ़ीबाग घनघोर जंगलों के बीच स्थित था। शाम के बाद वहां हर कोई जाने से डरता था।
लोग बताते हैं कि उस समय प्रतिदिन बाघ (बघेसुर) वहां आकर मंदिर की तकवारी करता था,कुछ समय बीतने के बाद बाबा बालक दास को वहां से सिद्धि प्राप्त हुई, जिससे वहां आने वाले दर्शनार्थियों की मन्नते भी पूरे होने लगी, जिसका पुण्य प्रताप चारों ओर फैलने लगा कोई बीमार हो, किसी का व्यापार हो, संतान की इच्छा पूर्ति सहित तमाम मनोकामनाएं यहां से पूरी होने लगी थी,जिस कारण मंदिर में चढ़ावा भी चढ़ने लगा। तभी कुछ अपराधिक किस्म के डाकूओं ने बाबा बालक दास की हत्या कर उन्हें कुएं में लटका दिया, उसके बाद समय बीतता गया कुछ समय बाद वहीं पास के ही गांव मगरघरा के इंदल सिंह ने मढ़ीबाग में पूजा पाठ करना शुरू कर दिया, उनके मृत्यु उपरांत उनका बेटा संपत सिंह आज भी मढ़ीबाग मंदिर के पुजारी के रूप में है।

 पांडवों ने किया था मंदिर का निर्माण 

लोग बताते हैं जिले का मढ़ीबाग और सगरा मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ जब पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां से गुजरे होंगे और अपना कुछ समय यहां व्यतीत किए होंगे उसी दौरान मढ़ीबाग और सगरा मंदिर का निर्माण किया था।

किवदंती है 

लोग बताते है कि जैसा मैहर में विराजमान मां शारदा मंदिर में आज भी प्रतिदिन सबसे पहले आल्हा-उदल आकर पूजा करते हैं उसी तरह मढ़ीबाग और सगरा मंदिर में भी कोई सिद्ध पुरुष प्रतिदिन सबसे पहले आकर पूजा अर्चना करते हैं।
2002 में कांग्रेस नेता अजय सिंह ने कराया जीर्णोद्धार
सन 2002-03 में स्थानीय कांग्रेस के नेता अजय सिंह ने मढ़ीबाग पहुंचने का सुगम रास्ता बनाया, जिसमें सीसी रोड व पुलिया का निर्माण किया गया। इसके साथ ही मंदिर व मंदिर प्रांगण का जीर्णोद्धार किया गया जिसमें मंदिर के सामने बृहद आंगन वा चबूतरो का निर्माण कराया गया और उस समय यह भी निर्णय लिया गया था कि प्रतिवर्ष मढ़ीबाग उत्सव का आयोजन किया जाएगा। और पहली बार 2002-03 में वृहद कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया जिसमें मशहूर पांडवनी गायक तीजन बाई ने भी प्रोग्राम दिया इसके अलावा जिले भर के लोगों ने शिरकत कर अपनी भागीदारी निभाई थी।  लेकिन इसके बाद समय के साथ सरकार बदली स्थानीय स्तर पर नेता बदलने के साथ राजनीति में वह सब कुछ बदल गया जिसे नहीं बदलना था, बल्कि उस परंपरा को आगे बढ़ाना था। तब से लेकर आज तक मढ़ीबाग  की तरफ किसी ने मुड़कर नहीं देखा। हैै
हालांकि इसके पहले तक उमरिया शहर के कुछ व्यापारियों ने यहां की व्यवस्था व देखरेख करते थे,शहर के स्व सेठ बाबूलाल गुप्ता का काफी समय तक मढ़ीबाग मंदिर में प्रतिदिन आना जाना था,पूजा पाठ भंडारा के अलावा मंदिर की देखभाल किया करते थे।इसके अलावा भी कुछ और व्यापारियों का भी सहयोग बराबर मिलता रहा है। लेकिन 2 दशक से ज्यादा के  समय से अब मंदिर और यह पूरा क्षेत्र दुर्दशा का शिकार है।

अनैतिक कार्यों का बना अड्डा

बीते कुछ सालों से मढ़ीबाग अब अनैतिक कार्यों का अड्डा बन गया है, जिससे दर्शनार्थी जाने से कतराते है बीते वर्षो में यहां नशेबाज व अपराधी ज्यादा सक्रिय रहे है। पहले भी कुछ लोंगो के साथ लूटपाट और मारपीट जैसी घटनाएं सामने आ चुकी है।
बहरहाल जब जागे तभी सवेरा वाली कहावत को ही मानकर अभी भी इस अनमोल ऐतिहासिक धरोहर को संवारने और संरक्षित करने का प्रयास होना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी को इस धरोहर सौपा जा सके।
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