एक बार फिर आई जिले से शर्मनाक तश्वीर, एक तरफ जोधइया ने जिले को गौरवान्वित किया हो, उसे घर तक नसीब नही

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कौशल विश्वकर्मा,उमरिया।
(संवाद)। जिले में एक नही बल्कि अनेकों ऐसी तश्वीरें सामने आती रहती है जिससे जिला सर्मसार न होता हो। हाल ही में एक बार फिर ऐसी ही तस्वीर सामने आई है, जहां एक ओर 82 साल की उम्रदराज बैगा आदिवासी महिला अपनी मेहनत और काबिलियत से पूरे मध्यप्रदेश सहित उमरिया जिले का नाम राष्ट्रीय पटल पर गौरवान्वित कर रही है वहीं पूरे जिले के लिए शर्मनाक बात यह की जोधाइया बाई जिले के लोढ़ा गांव स्थित एक झोपड़ीनुमा टपरिया में रहने को मजबूर है।
अनेकों बार कलेक्ट्रेट की काट चुकी है चक्कर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभिनव योजना पीएम आवास योजना लागू होने के समय से ही बैगा चित्रकार जोधाइया बाई भी अनेकों बार आवास की मांग कर चुकी है इसके लिए खुद जोधाइया ने कई बार कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर कलेक्टर सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों के चक्कर काट चुकी है, लेकिन उसे अब तक आवास नही मिल सका और वह आज भी झोपड़ीनुमा टपरिया में रहने को मजबूर है। इसके अलावा जोधाइया बाई वृद्धावस्था पेंशन, गरीबी रेखा का कार्ड और राशन के लिए भी बहुत परेशान हुई है।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मांगा आवास
जिले के जिम्मेदारों और पूरे जिले के लिए बेशर्मी की बात तब और हो गई जब नारी शक्ति सम्मान के लिए नई दिल्ली पहुंची जोधाइया बाई ने एक दिन पहले  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई मुलाकात में उसने सिर्फ अपने लिए पीएम आवास की मांग की।वही दूसरे दिन जब जोधाइया को राष्ट्रपति भवन में नारीशक्ति सम्मान के लिए बुलावा गया तब भी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों से सम्मान लेने उपरांत उनसे भी जोधाइया यह कहते हुए अपने लिए मकान की मांग की है कि साहब मैं झोपड़ी में रहती हूं,  मुझे पीएम आवास के तहत मकान दिलवा दीजिये। मैं प्रशासन से मांग मांग कर हार चुकी हूं।
बैगा जनजाति की है बुजुर्ग महिला
विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी बैगा जनजाति के लिए सरकार वैसे भी इन्हें विशेष पिछली जनजाति की श्रेणी में रखकर इनके उत्थान और इनका जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए अलग से योजनाए संचालित की है।लेकिन जिले में बैठे प्रशासनिक आकाओं के चलते धरातल पर इसकी तश्वीर जस की तस है।
बहरहाल इसे दुर्भाग्य या जिले में बैठे वरिष्ठ अधिकारियों की अकर्मण्यता ही माना जायेगा कि जो बुजुर्ग आदिवासी महिला बीते 10 वर्षों से किसी न किसी रूप में जिले का नाम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया हो, बावजूद इसके प्रशासनिक जिम्मेदारों से वो बुजुर्ग हमेशा छली गई है।
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